FDI full form and meaning in hindi language

FDI की फुल फॉर्म क्या होती है?

FDI की अंग्रेजी में फुल फॉर्म Foreign Direct Investment होती है और हिंदी भाषा में इसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नाम से जाना जाता है। अपने किसी भी निवेश को FDI में शामिल करना हो तो इसके लिए एक विदेशी निवेशक को किसी कंपनी के कम से कम 10 प्रतिशत शेयर खरीदने पड़ते है। FDI को खरीदने वाला निवेशक अपनी भूमिकारूप की व्यवस्था को विकसित भी कर सकता है।

Foreign Direct Investment (FDI) क्या होता है? 

Foreign Direct Investment (FDI) एक विभिन्न प्रकार का निवेश होता है और इसमें कोई भी विदेशी कंपनी किसी अन्य देश की व्यावसायिक इकाई या उस देश के व्यापार क्षेत्र में एक प्रकार से नियंत्रित स्वामित्व के रूप में अपने पैसे निवेश करती है। जैसे कि उदाहरण के तौर पर एक अमरीकी कंपनी वॉलमार्ट ने भारतीय कंपनी फ्लिपकार्ट में अपना बहुत ज्यादा पैसा निवेश किया है। FDI को भारत में एक स्वचालित और सरकारी तौर से अनुमति भी प्रदान की गई है।

Foreign Direct Investment (FDI) के कितने प्रकार होते है?

Foreign Direct Investment (FDI) के भारत में मुख्य रूप से दो प्रकार होते है और इसके दोनों प्रकार निम्नलिखित है:

  1. GFI: Greenfield Investment
  2. FPI: Foreign Portfolio Investment

1. Greenfield Investment (GFI)

Greenfield investment (GFI) को हिंदी में ग्रीनफ़ील्ड निवेश कहा जाता है और इसमें दूसरे देशों में कंपनियों को स्थापित करते है। GFI से उद्योगों के विस्तार में मजबूती आती है। 

2. Foreign Portfolio Investment (FPI)

Foreign portfolio investment (FPI) को हिंदी में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश कहा जाता है। FPI के अंतर्गत दूसरे देश की कंपनी के शेयर को खरीदा जाता हैं या फिर दूसरे देशों में इन्वेस्टर के अधिकार वाली कंपनी का अधिग्रहण किया जाता है। FPI द्वारा भारत को वर्ष 2019 में लगभग 51 अरब डॉलर विदेशी निवेश भी प्राप्त हुआ था। FPI से संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास सम्मलेन ने एक प्रेस को जारी करते हुए बताया कि वर्ष 2019 के वित्तीय वर्ष के अंतिम महीनों तक भारत सबसे अधिक FPI की निवेश पाने वाले देशों में 9वें नंबर पर आता है।

Foreign Direct Investment (FDI) का इतिहास क्या है?

भारत में FDI की शुरुआत वर्ष 1991 में हुई थी। उस वक्त के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में यह अहम निर्णय लिया गया था और तब FDI को भारत में मंजूरी दी गई थी। यह निर्णय देश की खराब अर्थव्यवस्था खराब को देख कर लिया गया था। इसके बाद में कुछ विदेशी कंपनियों को भारत में अपना व्यापार स्थापित करने और कुछ शर्तों के साथ निवेश करने की छूट दी गयी थी।

Foreign Direct Investment (FDI) की पॉलिसी क्या है?

जब भी कोई भी देश FDI के अंतर्गत आता है तो निवेशक देश और विदेशी निवेश की मेजबानी कर रहे देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने के लिए कुछ शर्तें भी रखी जाती है और इसे FDI पॉलिसी का नाम दिया जाता है! FDI Policy में एक प्रकार से लिखित करार/शर्तें होती हैं और in शर्तों को दोनों देशों को मानना पड़ता है! 

Foreign Direct Investment (FDI) पॉलिसी के मानदंड क्या-क्या है?

FDI को जारी करने के लिए कुछ मानदंड भी होते हैं जो कि निम्नलिखित है: 

  • कोई भी विदेशी कंपनी अपने पैसे निवेश दूसरे देश में अपने प्रबंधन शक्ति को मजबूत बनाने के लिए करती है! 
  • FDI में निवेश लम्बे समय के लिए किया जाता है FDI में निवेश के लिए लॉकिंग अवधि भी होती है!
  • FDI निवेश केवल उद्योग और कारखानों पर ही लिया जा सकता है और FDI में निवेश के अंतर्गत उद्योग एवं कारखानों का विस्तार भी किया सकता है! 
  • FDI में 100 प्रतिशत स्वामित्व के साथ कोई कंपनी अपनी एक नई सहायक कंपनी को विदेश में भी स्थापित कर सकती है।
  • FDI में निवेश से पहले 10 प्रतिशत शेयर का अधिग्रहण करना अनिवार्य होता है। 
  • FDI निवेश से पहले भारत की देशों से सीमाएं साझा होती है, उन देशों से या उनके देश की किसी भी कंपनी या वहां के किसी भी व्यक्ति को भारत में निवेश करने से पहले भारतीय सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है।

Foreign Direct Investment (FDI) पॉलिसी में 2020 तक क्या क्या बदलाव आए है?

वर्ष 2020 में चीन के भारत के HDFC Bank में 1.01 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी और इसके बाद भारत ने वर्ष 2020 में FDI कानून में संशोधन किए है। यह संशोधन इसलिए भी किया है क्यूंकि कोरोना के कारण देश में कई छोटी और मध्यम कंपनियां बंद हो गई हैं और ऐसे में किसी भी विदेशी कंपनी की साझेदारी से बचने के लिए किया गया है। अगर साधारण शब्दों में कहा जाए तो सरकार ने मुख्य रूप से भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिए यह संशोधन किया हैं।  

Foreign Direct Investment (FDI) पॉलिसी में क्या क्या संसोधन किए गए हैं:

  • अब से भारत में पड़ोसी देशों के FDI निवेश के लिए अब भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक होगा और यह कानून उन देशों के लिए लागू किया गया है जो भारत के साथ अपनी सीमाएं साझा करते हैं।
  • जो भी देश चीन के साथ अपनी सीमाएं साझा करते हों उन्हें भी भी FDI निवेश के पहले भारत सरकार की अनुमति प्रदान करनी होगी।
  • भारत सरकार की कैबिनेट द्वारा FDI में निवेश की एक सीमा को भी तय किया जाएगा और उसी निवेश सीमा के अंतर्गत कोई कंपनी तुरंत भी भारत में FDI निवेश कर सकती है। 
  • यदि किसी सेक्टर में विदेश से कोई राशि आती है तो पहले उस सेक्टर से जुड़े मंत्रालय को सूचित करना होगा और फिर उस सेक्टर से जुड़े मंत्रालय की मंजूरी भी लेनी पड़ेगी। 

भारत में Foreign Direct Investment (FDI) कैसे आता है?

भारत देश में Foreign Direct Investment (FDI) मुख्य रूप से दो प्रकार से आती है। वे दो प्रकार निम्नलिखित है:

  1. पहला सरकारी रूट है।
  2. दूसरा स्वचालित रूट है।

सरकारी रूट से Foreign Direct Investment (FDI) कैसे आती है?

सरकारी रुट से जो भी FDI निवेश करने के लिए देश में आते हैं उन्हें पहले सरकार द्वारा अनुमती लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए , यदि भारत के कोई पड़ोसी देश जैसे बांग्लादेश की कंपनी अगर भारत में निवेश करने आती है तो वो सरकारी रूट के माध्यम से से है आ सकती हैं।

स्वचालित रूट Foreign Direct Investment (FDI) कैसे आती है?

स्वचलित रूट से FDI निवेश देश में तब आये जाते हैं जब भारत सरकार द्वारा इसकी छूट दी जाए। उदाहरण के लिए, जैसे FDI के नए संशोधन को लागू करने से पहले भारत सरकार ने स्वचालित रूट से FDI को आने की छूट दी हुई थी और इसलिए चीन ने भारत में आकर FDI निवेश करना शुरू कर दिया था। इस रूट के अंतर्गत Reserve Bank of India (RBI) को सूचित कर दिया जाता है और उसके तुरंत बाद ही कोई देश FDI में निवेश शुरू कर देता है लेकिन वर्ष 2020 के नए संशोधन में जितने भी भारत के पड़ोसी देश हैं यदि वे भारत या चीन या दोनों के साथ अपनी सीमा को साझा करते हैं तो उन सभी देशों को सरकारी रूट के माध्यम से ही FDI निवेश करना होगा।

भारत की अन्य देशों में कितनी Foreign Direct Investment (FDI)  है?

वर्ष 2019-20 में भारत को Foreign Direct Investment (FDI) द्वारा करीब 51 अरब डॉलर का निवेश प्राप्त हुआ था और यह अब तक का भारत का सबसे अधिक FDI निवेश है। वर्ष 2020 अप्रैल से लेकर सितंबर 2020 तक भारत ने USA से करीब 7.5 US $ Billion और मॉरीशस से 2 US $ Billion का निवेश पाया था। भारत को सिंगापुर से वर्ष 2019-20 के दौरान 14.67 अरब डॉलर का निवेश FDI द्वारा प्राप्त हुआ था।

Foreign Direct Investment (FDI)  पॉलिसी के क्या-क्या फायदे हैं?

भारत को Foreign Direct Investment (FDI)  पॉलिसी से क्या क्या फायदे हैं वे निम्नलिखित है:

  • FDI निवेश से भारत की पूंजी में वृद्धि होती है और भारत के राजस्व कर में भी इजाफा होता है।
  • FDI से भारत की अंतरास्ट्रीय व्यापार में वृद्धि होती है।
  • अधिक FDI निवेश से भारत को आपूर्ति श्रृंखला में सुधार होता है और साथ ही विश्व स्तर पर भंडारण की कमी से बर्बाद होने वाले अनाज की बचत भी होती है।
  • इससे भारत के GDP विकास दर में बढ़ोतरी होती और विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा भी होता है।
  • FDI निवेश से भारत को अधिक गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिए स्थानीय लोगों और उद्योगों के विकास में भी सहायता प्राप्त होती है।
  • FDI निवेश से बड़ी कंपनियों से खाद्य उत्पाद को उपभोक्ता के द्वारा खरीदने से किसानों को अधिक लाभ और खाद्य महंगाई की दर में कमी देखने को भी मिलती है।
  • FDI कंपनियां अधिक रोजगार के अवसर प्रदान करती है क्योंकि इस क्षेत्र में कई प्रकार की नौकरियां उपलब्ध होती हैं।

Foreign Direct Investment (FDI) के नुकसान क्या-क्या है ?

Foreign Direct Investment (FDI) के नुकसान निम्नलिखित है:

  • भारत में FDI निवेश के लिए बेहतर सुविधाओं और महत्वपूर्ण संसाधनों की कमी होती है और इससे भारत में FDI निवेश को अपनी और आकर्षित करने में परेशानी होती है। इससे भारत की इकोनॉमी पर भी बुरा असर पड़ सकता है।
  • FDI निवेश की वजह से स्वदेशी निवेश को नुकसान होता है और उससे विदेशी निवेश का स्वदेशी उद्योगों पर अपना नियंत्रण बढ़ जाता है।
  • FDI निवेश से स्वदेशी उत्पादों के ब्रांड और संरक्षण पर विदेशी कंपनियों के अधिग्रहण होने का खतरा मंडराता रहता है।
  • FDI निवेश से देशी बाजारों, छोटे एंव मध्यम उद्योगों को नुकसान होने की आंशका भी बनी रहती है क्यूंकि यह विदेशी कंपनियां स्वचालित प्रणाली के साथ कार्य करती है और भारत में इस प्रकार की मशीनों और प्रणालियों के उपयोग बहुत कम होता है।
  • FDI निवेश वाली कंपनियों में उत्पादन की दर अधिक होती है और इस वजह से बाजार में उत्पाद की सप्लाई अधिक हो जाती है जिससे सामान सस्ता हो जाता है और उसी उत्पाद का देशी उत्पादन करने वाले उद्योगों को नुकसान होता है।